जिंदगी की शाम
थोड़ा आराम चाहिए।
🌹🌹नजरिया 🌹🌹
चलते चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
ये समय रूके तो ।
मैं भी रूक जाऊँ।
घड़ी की सुईयो जैसी ।
निरन्तर चल रहीं हूँ।
चलते-चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
अभी तो शादी हुई है ।
जिंदगी की न्ई ।
शुरूआत हुई है।
अभी से थक गई तो ।
कैसे चलेगा।
परिवार पूरा सम्भाल लूँ।
फिर मै रूकूगी।
चलते-चलते बहुत ।
थक गई हूँ ।
बच्चों और पति के साथ ।
कुछ समय में अच्छे से बिता लूँ
थोड़ा आहिस्ता आहिस्ता ।
सांस मैं भरूगी।
बच्चों के पीछे-पीछे ।
निरन्तर चल रहीं हूँ
चलते चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
सोचा इन सबकी ।
जिम्मेदारी हो जाए पूरी।
थोड़ा साँस ले लूँ बस ।
जितना हो जरूरी।
जिदंगी के पड़ाव ।
निरन्तर पार कर रही हूँ।
चलते-चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
अब जिंदगी की ।
शाम भी आ ग्ई।
सुबह के इन्जार में।
रात गुजरने का ।
इन्तजार कर रही हूँ।
मै पृथ्वी की जैसी ।
लगातार घूम रही हूँ।
चलते चलते बहुत ।
थक गई हूँ।
नीलम गुप्ता (नजरिया)
दिल्ली
Niraj Pandey
06-Jul-2021 12:30 AM
वाह👌👌
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Aliya khan
05-Jul-2021 04:36 PM
बेहतरीन
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मनीषा अग्रवाल
05-Jul-2021 10:20 AM
बहुत सुंदर कविता मैम 👌👌👌
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